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Supreme Court Hearing on Waqf Law: वक्फ संशोधन कानून मामले में अंतरिम राहत के मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है. मंगलवार (20 मई, 2025) को हुई सुनवाई में नए कानून का विरोध कर रहे याचिकाकर्ताओं ने जिरह की. जिस पर सरकार की तरफ से बुधवार (21 मई, 2025) को जवाब दिया जाएगा. याचिकाकर्ता पक्ष की तरफ से 5 वरिष्ठ वकीलों ने कानून के अलग-अलग प्रावधानों पर रोक लगाने की मांग की.

पौने 4 घंटे तक कोर्ट में चली बहस

याचिकाकर्ता पक्ष को बोलने के लिए कोर्ट की तरफ से 2 घंटे का समय मिला था, लेकिन उनके वकीलों ने 3 घंटा 45 मिनट तक बहस की. इस दौरान वक्फ रजिस्ट्रेशन, वक्फ बाय यूजर, सरकार और वक्फ बोर्ड के विवाद में निर्णय सरकारी अधिकारी को ही दिए जाने, वक्फ बोर्ड और काउंसिल में गैर मुस्लिमों की एंट्री और वक्फ करने के लिए कम से कम 5 साल मुस्लिम होने की शर्त जैसे कई मुद्दे याचिकाकर्ता पक्ष की तरफ से उठाए गए.

सरकार ने 3 मुद्दों पर बहस की बात कही

चीफ जस्टिस बीआर गवई और ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच के सामने बहस शुरू होने से पहले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्होंने 3 मुद्दों पर जवाब दाखिल किया है. यह मुद्दे हैं- वक्फ बाय यूजर, वक्फ बोर्ड और काउंसिल में गैर-मुस्लिम सदस्यों की मौजूदगी और वक्फ बोर्ड के दावे वाली सरकारी जमीन की पहचान. मेहता ने दावा किया कि इससे पहले सुनवाई करने वाली बेंच ने यही मुद्दे अंतरिम राहत पर विचार के लिए तय किए थे.

कपिल सिब्बल ने कहा, संपत्ति हड़पने का कानून

याचिकाकर्ता पक्ष की तरफ से वरिष्ठ वकीलों कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने मेहता के दावे का विरोध किया. उन्होंने कहा कि ऐसी कोई सीमा तय नहीं हुई थी. इसके बाद जजों ने उन्हें अपनी बात रखने की इजाजत दे दी. बहस की शुरुआत करते हुए सिब्बल ने कहा कि नया कानून वक्फ की संपत्ति हड़पने के मकसद से बनाया गया लगता है.

रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता से नुकसान

अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि पुराने कानून में वक्फ के रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था थी. लेकिन ऐसा न होने पर मुतवल्ली को दंड देने का प्रावधान था. नया कानून अनरजिस्टर्ड संपत्ति का वक्फ का दर्जा ही खत्म कर देगा. वक्फ बाय यूजर के रजिस्ट्रेशन को भी अनिवार्य किया गया है. लेकिन किसी पुरानी संपत्ति का सिर्फ यूज (इस्तेमाल) कर रहे व्यक्ति के पास उसके दस्तावेज होना मुश्किल है.

सरकार को ज्यादा अधिकार का विरोध

इस मामले में कोर्ट ने सभी याचिकाओं को एक ही नाम देते हुए 1 से 5 के क्रम में रखा है. याचिका नंबर 1 के लिए पक्ष रखते हुए सिब्बल ने कहा कि सरकार के साथ किसी संपत्ति के विवाद में सरकारी अधिकारी को ही फैसले का अधिकार दिया गया है. संपत्ति की जांच शुरू होते ही वक्फ बोर्ड का कब्जा खत्म हो जाएगा. सरकारी अधिकारी का फैसला आने के बाद वक्फ ट्रिब्यूनल में चुनौती दी जा सकती है. लेकिन उसमें 5-10 साल का समय लग जाएगा.

मस्जिद दान से नहीं चलती

मस्जिदों के प्रबंधन को मंदिरों से अलग बताते हुए सिब्बल ने दलील दी कि मंदिरों को हजारों करोड़ रुपए का दान मिलता है. मस्जिद वक्फ संपत्ति से होने वाली आय के आधार पर चलते हैं. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि वह दरगाहों में गए हैं. वहां भी दानपेटी होती है. सिब्बल ने कहा कि मस्जिद और दरगाह की व्यवस्था अलग-अलग तरीके से होती है.

धार्मिक गतिविधि पर असर

कपिल सिब्बल ने यह दावा भी किया कि नए कानून में पुरातात्विक इमारतों का वक्फ का दर्जा खत्म हो जाएगा. वहां लोग धार्मिक गतिविधि नहीं कर सकेंगे. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसे गलत बताया. कोर्ट ने कहा कि वह अपनी बारी पर इसका जवाब दें.

मामले में 4 और वकीलों ने रखा पक्ष

करीब 2.30 घंटे दलीलें रखने वाले सिब्बल ने वक्फ बोर्ड और वक्फ काउंसिल में गैर-मुस्लिमों को भी सदस्य बनाने के प्रावधान का विरोध किया. उन्होंने इसे मुसलमानों के साथ भेदभाव बताया. आदिवासी वर्ग की जमीन पर वक्फ बोर्ड के दावे से रोकने को भी उन्होंने गलत बताया. उनके बाद लगभग सवा घंटा वरिष्ठ वकीलों राजीव धवन, अभिषेक मनु सिंघवी, सीयू सिंह, हुजैफा अहमदी ने बहस की. सिंघवी ने दावा किया कि सिर्फ 5 राज्यों में सर्वे करवा कर नए कानून का आधार बनाया गया. धवन ने कहा कि कानून के बहुत से प्रावधानों पर तत्काल रोक की जरूरत है.

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