solicitor general tushar mehta in supreme court says waqf is not necessary in islam waqf amendment act ann

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Waqf Amendment Law in Supreme Court: वक्फ संशोधन कानून की धाराओं पर अंतरिम रोक को लेकर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार (21 मई, 2025) को लगातार दूसरे दिन बहस हुई. चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच से समक्ष केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मोर्चा संभाला. उन्होंने याचिकाकर्ता पक्ष की तरफ से मंगलवार (20 मई, 2025) को रखी गई दलीलों का उत्तर दिया. मेहता ने सबसे अहम बात यह कही कि जिस तरह से दूसरे धर्मों में दान या चैरिटी होती है, इस्लाम में वक्फ वैसा ही है. वह धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है. इसे संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत मौलिक अधिकार नहीं कहा जा सकता है.

बाबा साहब के भाषण का हवाला

मेहता इस दलील का जवाब दे रहे थे जिसमें वक्फ संशोधन कानून को धार्मिक मामलों में दखल बताया गया था. उन्होंने बाबा साहब अंबेडकर के एक भाषण का भी हवाला दिया. उस भाषण में बाबा साहब ने कहा था कि अगर हर बात को धार्मिक संरक्षण दिया गया, तो समाज कल्याण के कानून बनाना मुश्किल हो जाएगा. सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि सरकार का कानून सार्वजनिक हित में है.

याचिकाकर्ता कानून से खुद प्रभावित नहीं

बहस की शुरुआत में मेहता ने कहा, “संसद ने पूरी प्रक्रिया का पालन करते हुए विस्तृत चर्चा के बाद कानून बनाया है. जेपीसी ने रिपोर्ट देने से पहले लाखों लोगों से बात की. सुप्रीम कोर्ट पहुंचे कुछ लोग खुद को पूरे मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधि नहीं बता सकते हैं. कोई भी याचिकाकर्ता कानून से व्यक्तिगत रूप से प्रभावित नहीं है. वक्फ कानून में 1923 से ही कमी चली आ रही थी. इसे नए कानून में दुरुस्त किया गया है.”

वक्फ बाय यूजर का रजिस्ट्रेशन जरूरी

मेहता ने कहा, ”वक्फ बाय यूजर के रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था 1923 से थी. संपत्ति का इस्तेमाल कर रहे जो लोग 102 साल से रजिस्ट्रेशन नहीं करवा रहे थे, उनके लिए अभी भी मौका है. रजिस्ट्रेशन की शर्त नहीं हटाई जा सकती. इसे हटाने का मतलब ऐसी चीज को अनुमति देना होगा, जो शायद शुरू से ही गलत थी. ऐसी संपत्ति का उपयोग सार्वजनिक हित में होना चाहिए. इसे संपत्ति हड़पने की कोशिश कहना गलत है.”

रेवेन्यू रिकॉर्ड सुधार से मालिकाना हक नहीं

केंद्र के वकील ने सरकारी जमीन से जुड़े विवाद में सरकार के अधिकारी की तरफ से जांच का भी जवाब दिया. मेहता ने कहा, “भू-राजस्व रिकॉर्ड की जांच और सुधार रेवेन्यू ऑफिसर ही करता है. इस सुधार का मतलब मालिकाना हक नहीं है. रेवेन्यू अधिकारी के फैसले को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है. राजस्व रिकॉर्ड में एंट्री के बाद भी सरकार सीधे मालिक नहीं बन सकती. उसे कोर्ट में सिविल याचिका दाखिल करनी होगी. आंध्र प्रदेश समेत कई जगहों पर वक्फ बोर्ड ने सरकारी जमीन पर कब्जा कर रखा है. उसकी जांच और कार्रवाई जरूरी है.”

धार्मिक गतिविधि चलती रहेगी

नए वक्फ कानून के चलते प्राचीन स्मारकों में धार्मिक गतिविधि बंद होने के दावे को भी मेहता ने गलत बताया. उन्होंने कहा, “प्राचीन स्मारक का वक्फ नोटिफिकेशन रद्द होना अलग बात है. इससे वहां धार्मिक गतिविधि बंद नहीं होगी.” सॉलिसिटर जनरल ने कहा, “संरक्षित स्मारक कानून साफ कहता है कि जिस जगह का जो चरित्र है, वह बना रहेगा.” उन्होंने कहा कि जौनपुर की अटाला मस्जिद के प्राचीन स्मारक होने के बावजूद वहां ASI को रखरखाव कार्य से रोक दिया गया. बाद में मस्जिद कमेटी ने वहां नए निर्माण भी करवा दिए. इसलिए ASI को ज्यादा अधिकार देना जरूरी है.

5 साल से मुस्लिम होने की शर्त सही

वक्फ करने के लिए 5 साल से मुस्लिम होने की शर्त को भी मेहता ने जरूरी बताया. पहले सिर्फ मुस्लिम ही वक्फ कर सकता था. लेकिन 2013 में चुनाव से पहले नया कानून बना दिया गया. यह कह दिया गया कि कोई भी वक्फ कर सकता है. इसी गलती को नए कानून में सुधारा गया है. वक्फ करने के लिए कम से कम 5 साल से मुस्लिम होने की शर्त रखी गई है.

वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम की सीमित संख्या

वक्फ बोर्ड और वक्फ काउंसिल में गैर-मुस्लिमों को जगह देने का भी केंद्र के वकील ने बचाव किया. उन्होंने कहा, “यह दावा गलत है कि अब वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों का वर्चस्व हो जाएगा. इसमें सिर्फ 2 सदस्य गैर-मुस्लिम होंगे. उनकी भूमिका भी बहुत सीमित होगी. यह बदलाव जरूर हुआ है कि पहले सिर्फ शिया और सुन्नी सदस्य होते थे. अब आगाखानी और बोहरा मुस्लिम भी सदस्य हो सकते हैं.”

मेहता ने कहा, “वक्फ और हिन्दू एंडॉमेंट में अंतर है. हिन्दू एंडॉमेंट में मंदिर होते हैं. वक्फ में मस्जिद, दरगाह के अलावा कॉलेज, मुसाफिरखाना जैसी चीजें भी हो सकती हैं. यह सेक्यूलर गतिविधि है. इसलिए कुछ गैर-मुस्लिम सदस्य वक्फ बोर्ड में हैं.”

आदिवासी भूमि का संरक्षण जरूरी

आदिवासी भूमि को वक्फ बोर्ड के दावे को रोकने को सरकार के वकील ने सही बताया. उन्होंने कहा, “संविधान में जनजातीय क्षेत्रों को विशेष संरक्षण दिया गया है. नए वक्फ कानून में इसके मुताबिक ही व्यवस्था की गई है कि ट्राइबल लैंड पर वक्फ बोर्ड दावा नहीं कर सकता. मामले की सुनवाई गुरुवार (22 मई, 2025) को भी जारी रहेगी.

मामले पर मुख्य न्यायाधीश की अहम टिप्पणी

सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने अहम टिप्पणी की. उन्होंने कहा, “संसद से पारित कानून को कोर्ट का फैसला होने तक संवैधानिक दृष्टि से सही माना जाता है. इसलिए कानून पर अंतरिम रोक के लिए याचिकाकर्ताओं को मजबूत आधार देने होंगे.”

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