Asaduddin Owaisi allegations Bihar assembly elections said Election Commission of india secretly implementing NRC
AIMIM सुप्रीमो और लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए हैं. उन्होंने शुक्रवार (27 जून, 2025) को एक्स पर पोस्ट कर कहा कि निर्वाचन आयोग बिहार में गुप्त तरीके से एनआरसी लागू कर रहा है. वोटर लिस्ट में नाम दर्ज करवाने के लिए अब हर नागरिक को दस्तावेज़ों के ज़रिए साबित करना होगा कि वह कब और कहां पैदा हुए थे और साथ ही यह भी कि उनके माता-पिता कब और कहां पैदा हुए थे.
ओवैसी ने कहा कि विश्वसनीय अनुमानों के अनुसार भी केवल तीन-चौथाई जन्म ही पंजीकृत होते हैं, ज़्यादातर सरकारी कागज़ों में भारी ग़लतियां होती हैं. बाढ़ प्रभावित सीमांचल क्षेत्र के लोग सबसे ग़रीब हैं, वे मुश्किल से दिन में दो बार खाना खा पाते हैं. ऐसे में उनसे यह अपेक्षा करना कि उनके पास अपने माता-पिता के दस्तावेज़ होंगे, एक क्रूर मज़ाक़ है.
‘लोगों का निर्वाचन आयोग से भरोसा कमज़ोर हो जाएगा’
AIMIM सुप्रीमो ने चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि इस प्रक्रिया का परिणाम यह होगा कि बिहार के ग़रीबों की बड़ी संख्या को वोटर लिस्ट से बाहर कर दिया जाएगा. वोटर लिस्ट में अपना नाम भर्ती करना हर भारतीय का संवैधानिक अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट ने 1995 में ही ऐसी मनमानी प्रक्रियाओं पर सख़्त सवाल उठाए थे. चुनाव के इतने क़रीब इस तरह की कार्रवाई शुरू करने से लोगों का निर्वाचन आयोग से भरोसा कमज़ोर हो जाएगा.
ओवैसी ने बताया, चुनाव आयोग क्या कर रहा है ?
उन्होंने बताया कि अगर आपकी जन्मतिथि जुलाई 1987 से पहले की है तो आपको जन्म की तारीख और/या जन्म स्थान दिखाने वाला कोई एक दस्तावेज़ देना होगा (11 में से एक). अगर आपका जन्म 01.07.1987 और 02.12.2004 के बीच हुआ है तो आपको अपना जन्म प्रमाण (तारीख और स्थान) दिखाने वाला एक दस्तावेज़ देना होगा और साथ ही अपने माता या पिता में से किसी एक की जन्म तारीख और जन्म स्थान का दस्तावेज़ भी देना होगा.
उन्होंने आगे बताया कि अगर आपका जन्म 02.12.2004 के बाद हुआ है तो आपको अपनी जन्म तारीख और स्थान के दस्तावेज़ के साथ-साथ, दोनों माता-पिता के जन्म की तारीख और स्थान को साबित करने वाले दस्तावेज़ भी देने होंगे. अगर माता या पिता में से कोई भारतीय नागरिक नहीं है तो उस समय का उनका पासपोर्ट और वीज़ा भी देना होगा.
‘नागरिकता के लिए हर तरह के सबूत स्वीकार किए जाने चाहिए’
ओवैसी ने कहा कि चुनाव आयोग हर वोटर की जानकारी एक महीने (जून-जुलाई) में घर-घर जाकर इकट्ठा करना चाहता है. बिहार जैसा राज्य जो बहुत बड़ी आबादी और कम कनेक्टिविटी वाला है, वहां इस तरह की प्रक्रिया को निष्पक्ष तरीके से करना लगभग असंभव है. लाल बाबू हुसैन केस (1995) में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि किसी व्यक्ति को, जो पहले से वोटर लिस्ट में दर्ज है, बिना सूचना और उचित प्रक्रिया के हटाया नहीं जा सकता.
ये चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है कि वह दिखाए कि किसी व्यक्ति को विदेशी क्यों माना जा रहा है. सबसे अहम बात कोर्ट ने ये भी कहा कि नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज़ों की एक सीमित सूची नहीं हो सकती. हर तरह के सबूत को स्वीकार किया जाना चाहिए.
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