‘हिंदू भगवान का इस तरह अपमान नहीं कर सकते’, तमिलनाडु पुलिस की लापरवाही पर भड़का कोर्ट और दे दिया ये अहम निर्देश

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मद्रास हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी को भी अधिकार नहीं है कि वह हिंदू भगवान और देवी-देवताओं का अनादरपूर्ण चित्रण करे. कोर्ट ने तमिलनाडु पुलिस को फटकार लगाते हुए यह टिप्पणी की है. यह मामला एक फेसबुक पोस्ट से जुड़ा है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण की तस्वीर को अपमानजनक भाषा वाले कैप्शन के साथ पोस्ट किया गया था और पुलिस ने पोस्ट करने वाले पर न तो कोई कार्रवाई की और केस भी बंद कर दिया.

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस के मुरली शंकर की बेंच ने 4 अगस्त को मामले पर सुनवाई करते हुए तमिलनाडु पुलिस को फिर से जांच करने और तीन महीने के अंदर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है. कोर्ट शिकायतकर्ता पी परमसिवन की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिन्होंने ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी है. इस फेसबुक पोस्ट पर तमिल में दो कमेंट भी किए गए थे, जिसमें लिखा है, ‘कृष्ण जयंती ऐसे व्यक्ति का उत्सव है, जो नहाते समय लड़कियों के कपड़े छिपाता था.’

कोर्ट ने मामले में अहम टिप्पणी करते हुए कहा, हिंदू भगवान को अपात्तिजनक तरीके से चित्रित करना और जानबूझकर लाखों लोगों की आस्था को ठेस पहुंचायए जाने को उचित नहीं ठहराया जा सकता है. इस तरह के कृत्य देश में नफरत और धार्मिक आक्रोश फैला सकते हैं, सामाजिक व्यवस्था को बिगाड़ सकते हैं और सांप्रदायिक सद्भाव को नुकसान पहुंचा सकते हैं. धार्मिक देवताओं और प्रतीकों के प्रति लोगों में अपार सम्मान होता है और इस तरह की चीजें समाज के एक बड़े हिस्से को दुख पहुंचा सकती हैं और सामाजिक अशांति का कारण भी बन सकती हैं इसलिए ऐसे चित्रण को संवेदनशीलता के साथ देखना जरूरी है. सरकार को भरोसा दिलाना चाहिए कि फ्रीडम ऑफ स्पीच का मतलब धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना न बने.

रिपोर्ट के अनुसार कोर्ट ने कहा कि भगवान कृष्ण के गोपियों के कपड़े छिपाने की कहानी को एक प्रतीकात्मक कहानी के तौर पर देखा जाता है, जिसकी कई अलग-अलग व्याख्याएं हैं. इसमें यह भी शामिल है कि यह गोपियों की परीक्षा थी कि क्या उनकी भक्ति सांसारिक आसक्तियों से परे थी. कोर्ट ने कहा कि यह कहानी आध्यात्मिक खोज और वैराग्य के महत्व पर प्रकाश डालती है.

इस मामले में पी परमसिवन ने एफआईआर करवाई थी, लेकिन फरवरी में पुलिस ने नेगेटिव रिपोर्ट पेश की और कहा कि मेटा से उन्हें पोस्ट करने वाले यूजर की जानकारी नहीं मिल पाई है. इसके बाद मार्च में ट्रायल कोर्ट ने पुलिस की रिपोर्ट स्वीकार कर ली और मामले को अनडिटेक्टेड करार देते हुए बंद कर दिया.

कोर्ट ने पुलिस की इस लापरवाही पर नाराजगी जताई और कहा कि बेहद गंभीर मामले को पुलिस ने बहुत ही लापरवाही के साथ हैंडल किया है. कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने जांच को सिर्फ फेसबुक से यूजर की जानकारी प्राप्त करने तक ही सीमित रखा, जबकि यूजर की प्रोफाइल पर मौजूद पर्सनल डिटेल्स से उसको ट्रेस करके, उसका पता लगाया जा सकता था. कोर्ट ने कहा कि जांच पूरी लगन से नहीं की गई. कोर्ट ने कहा कि यूजर ने अभियक्ति की आजादी के नाम पर पोस्ट में हदें पार कर दी हैं.

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