सुप्रीम कोर्ट से आईएमए को बड़ा झटका, पारंपरिक चिकित्सा के विज्ञापनों के खिलाफ दायर याचिका खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त 2025 को भारतीय चिकित्सा संघ (IMA) की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें पारंपरिक दवाओं से संबंधित भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी. यह मामला तब शुरू हुआ जब IMA ने पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ कोर्ट का रुख किया था. याचिका में आईएमए ने दावा किया गया था कि पतंजलि के विज्ञापन भ्रामक हैं और आधुनिक चिकित्सा को बदनाम करते हैं.
आयुष मंत्रालय ने हटा दिया था नियम 170
एक जुलाई 2024 को आयुष मंत्रालय ने ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स 1945 के नियम 170 को हटा दिया था. इस नियम के तहत आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी दवाओं के विज्ञापन के लिए राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण से पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य था. इस नियम को हटाने से भ्रामक दावों पर रोक लगाने में चुनौती बढ़ गई थी. हालांकि, अगस्त 2024 में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने नियम 170 के हटाने पर रोक लगा दी, जिससे अनुमति की आवश्यकता अस्थायी रूप से बहाल हो गई.
केंद्र द्वारा हटाए गए नियम को पुनर्जनन नहीं कर सकते- सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस के.वी. विश्वनाथन ने सवाल उठाया कि जब केंद्र ने नियम को हटा दिया है तो राज्य इसे कैसे लागू कर सकते हैं. वहीं, जस्टिस बी.वी. नागरथना ने मामले को बंद करने का सुझाव दिया, क्योंकि IMA द्वारा मांगी गई मुख्य राहतें पहले ही पूरी हो चुकी थीं. उन्होंने कहा कि केंद्र द्वारा हटाए गए नियम को कोर्ट पुनर्जनन नहीं कर सकता.
पहले की सुनवाई में कोर्ट ने पतंजलि के भ्रामक विज्ञापनों, नियामक प्राधिकरणों की निष्क्रियता और बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण से सुधारात्मक कदमों पर ध्यान केंद्रित किया था. सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू की थी, जिसे कंपनी के बार-बार माफी मांगने के बाद बंद कर दिया गया. कोर्ट ने यह भी चेतावनी दी कि विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाने और AYUSH दवाओं के निर्माण की अनुमति देने से अनुचित व्यापारिक प्रथाएं बढ़ सकती हैं.
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