ब्रिटिश सरकार अपने जासूसों के जरिए संघ की हर एक जानकारी रखती थी: मोहन भागवत
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने दिल्ली में आयोजित पुस्तक लोकार्पण कार्यक्रम के दौरान समाज, परिवर्तन और आदर्शों को लेकर कई महत्वपूर्ण बातें कहीं. आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, “1942 और उसके बाद, ब्रिटिश सरकार ने अपने गुप्तचरों से संघ का विस्तृत सर्वेक्षण करवाया था. मुझे हमारे विदर्भ और खानदेश क्षेत्रों में शाखाओं के सर्वेक्षण दस्तावेज मिले. गुप्तचरों के पास कितनी जानकारी थी, यह देखकर मैं वाकई हैरान था. उनके पास इस बात का रिकॉर्ड था कि किस शाखा में कितने नियमित संघ सदस्य थे, उनके नाम और कितने पूर्णकालिक कार्यकर्ता थे.”
उन्होंने कहा, “उनके पास गतिविधियों, किसने भाषण दिया और क्या कहा गया, इन सबकी जानकारी भी थी. अंत में लगभग हर एक कलेक्टर की कमेंट है कि अभी तो ये लोग कुछ उपद्रव नहीं कर रहे हैं, साफ-सुथरे दिख रहे हैं, लेकिन कल जब ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू होगा, तो ये लोग हमारे लिए बहुत बड़ी बाधा सिद्ध होंगे. कुछ भी नहीं था, लेकिन संघ बड़ा हो गया.”
उन्होंने कहा, “आदर्श सितारों की तरह होते हैं, जिन्हें हम छू नहीं सकते, लेकिन उनकी रोशनी हमारे रास्ते को दिखाती है.” उन्होंने बताया कि आदर्शों से प्रेरित मार्ग चुनौतियों से भरा होता है और आम लोग उस राह पर चलने में अक्सर झिझकते हैं. ऐसे में किसी ऐसे साथी की जरूरत होती है जो थोड़ा सा आगे चल रहा हो और हाथ पकड़कर मार्गदर्शन करे.
संघ प्रमुख ने परिवर्तन पर भी अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि केवल बातों से नहीं, बल्कि जीवन में बदलाव लाकर समाज में परिवर्तन लाया जा सकता है. उन्होंने कहा, “बदलाव लोगों तक कैसे पहुंचेगा? शब्दों से नहीं, बल्कि स्वयंसेवकों के जीवन में वह बदलाव पहले दिखेगा.” उन्होंने कहा कि जब स्वयंसेवकों की जीवनशैली में बदलाव नजर आएगा, तभी लोग उनसे सीखेंगे और उसे अपनाएंगे.
मोहन भागवत ने कहा, “विचार अच्छे हैं, लोग उन्हें स्वीकारते भी हैं, लेकिन कैसे करें, यह नहीं समझते. जब वे उदाहरण देखेंगे, तब रास्ता अपनाएंगे.” भागवत ने समाज में महिलाओं की भूमिका को लेकर भी महत्वपूर्ण बातें कहीं. उन्होंने कहा कि संघ के कार्य विभागों में अब महिलाएं भी शामिल हो रही हैं और धीरे-धीरे उनकी भागीदारी बढ़ रही है. उन्होंने कहा, “संगठन से बाहर समाजसेवा के कार्यों में पुरुष और महिलाएं साथ मिलकर काम करते हैं. कई बार तो नेतृत्व की भूमिका में महिलाएं होती हैं.”
उन्होंने एक दिलचस्प किस्सा भी साझा किया और कहा, “जयपुर में मुझसे पूछा गया कि संघ में कितनी महिलाएं हैं? मैंने कहा, जितने स्वयंसेवक हैं, कम से कम उतनी तो महिलाएं हैं ही.” कार्यक्रम के दौरान ‘तन समर्पित, मन समर्पित’ नामक पुस्तक का लोकार्पण भी किया गया. इस अवसर पर भागवत ने कहा, “यह किताब हर परिवार को खरीदनी चाहिए और घर में रखनी चाहिए. यदि हम अपने साप्ताहिक पारिवारिक संवाद की शुरुआत रोज इस किताब के कुछ अंश पढ़कर करें, तो हमारे सोचने के तरीके, काम की शैली और जीवन की गुणवत्ता में सुधार आएगा.” उन्होंने यह भी कहा कि यह पुस्तक न केवल सुंदर तरीके से डिजाइन की गई है, बल्कि तकनीकी रूप से भी अच्छी तरह तैयार की गई है.
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