ब्रह्मपुत्र पर चीन का सुपर डैम, भारत और बांग्लादेश की चिंताओं को किया खारिज, कहा- ‘निचले इलाकों पर कोई असर नहीं’

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चीन ने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने पर काम शुरू कर दिया है. उसने अपने इस फैसले का बचाव करते हुए कहा कि इस प्रोजेक्ट से भारत और बांग्लादेश जैसे निचले देशों पर इसका कोई निगेटिव प्रभाव नहीं पड़ेगा. ऐसा माना जा रहा है कि भारत ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया के सबसे बड़े जल विद्युत बांध के निर्माण पर कड़ी नजर रख रहा है.

चीन के प्रधानमंत्री ली क्विंग ने शनिवार को अरुणाचल प्रदेश सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास स्थित न्यिंगची शहर में यारलुंग जांगबो नदी के निचले हिस्से में बांध का निर्माण शुरू किए जाने की घोषणा की. चीन में ब्रह्मपुत्र नदी को यारलुंग त्सांगपो के नाम से जाना जाता है. चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने एक संवाददाता सम्मेलन में बांध को लेकर भारत और बांग्लादेश की चिंताओं के बारे में पूछे जाने पर जवाब दिया.

जल प्रलय ला सकता है बांध: अरुणाचल CM

उन्होंने कहा कि इस परियोजना का निचले इलाकों पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ेगा. वहीं भारत में इस बांध के संभावित पर्यावरणीय प्रभाव को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं. अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने इस बांध को ‘जल बम’ के समान बताया था, जो देश के निचले इलाकों में जल प्रलय ला सकता है. 

खांडू ने 8 जुलाई को ‘पीटीआई’ को दिए इंटरव्यू में कहा था कि ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया की सबसे बड़ी बांध परियोजना गंभीर चिंता का विषय है क्योंकि चीन ने अंतरराष्ट्रीय जल संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, जो उसे अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का पालन करने के लिए बाध्य कर सकती थी. उन्होंने कहा था, ‘मुद्दा यह है कि चीन पर भरोसा नहीं किया जा सकता. कोई नहीं जानता कि वह कब क्या कर बैठे.’ 

भारतीय सीमा के क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा

इस बांध से हर साल 300 अरब किलोवाट घंटे से ज्यादा बिजली पैदा होने की उम्मीद है, जो 30 करोड़ से ज्यादा लोगों की वार्षिक जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है. भारत में इस बात को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं कि बांध के आकार और पैमाने के कारण चीन को जल प्रवाह को नियंत्रित करने की ताकत तो मिलेगा ही, साथ ही इससे बीजिंग भारी मात्रा में पानी छोड़ने में सक्षम हो जाएगा, जिससे भारतीय सीमा के क्षेत्रों में बाढ़ आ सकती है.

गुओ ने निचले तटवर्ती राज्यों की चिंताओं को खारिज करते हुए कहा कि चीन ने जल विज्ञान संबंधी आंकड़े और बाढ़ की रोकथाम ए‍वं आपदा निवारण के उपाय साझा करके उनके साथ सहयोग किया है. उन्होंने कहा कि चीन ने इस परियोजना के संबंध में दोनों देशों के साथ आवश्यक बातचीत की है और वह नदी के किनारे रहने वाले लोगों के हित के लिए निचले इलाकों के साथ सहयोग बढ़ाना जारी रखेगा.

परियोजना का मकसद स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन 

चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि यारलुंग त्सांगपो नदी के निचले क्षेत्र में परियोजना का विकास चीन की संप्रभुता का मामला है. उन्होंने कहा कि इस परियोजना का मकसद स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन करना, स्थानीय लोगों के जीवन में सुधार लाना और जलवायु परिवर्तन से निपटना है. 

गुओ ने दावा किया कि चीन निचले इलाकों में जल विद्युत परियोजनाओं की योजना, डिजाइन और निर्माण के मामले में पारिस्थितिकी तंत्र की चौतरफा सुरक्षा के लिए उच्चतम औद्योगिक मानकों का सख्ती से पालन करता है. उन्होंने कहा कि परियोजना के विकास से नदी के किनारे आपदाओं को रोकने में मदद मिलेगी और निचले इलाकों पर इसका कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा. 

चीन ने 2015 में तिब्बत में 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर के सबसे बड़े जैम जल विद्युत स्टेशन को पहले ही चालू कर दिया है, जिससे भारत में चिंताएं पैदा हो गई हैं. आलोचकों का कहना है कि ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध का निर्माण इंजीनियरिंग के लिहाज से बड़ी चुनौती पेश करता है, क्योंकि परियोजना स्थल टेक्टोनिक प्लेट सीमा पर स्थित है, जहां अक्सर भूकंप आते रहते हैं.

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