टैरिफ वॉर से अमेरिका पर ही कुल्हाड़ी मार रहे ट्रंप! रूस-भारत और चीन की तिकड़ी आजमा रही ताकत
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का दूसरा कार्यकाल कूटनीति से ज्यादा पारंपरिक गठबंधनों को तोड़ने में बीत रहा है. ट्रंप ने हाल ही में नए टैरिफ लगाए हैं-भारत और ब्राजील के सामान पर 50% शुल्क, यूरोपीय धातुओं पर ड्यूटी बढ़ाई गई और चीनी टेक निर्यात पर रोक लगाई गई. उनके सलाहकार इसे वैश्विक आर्थिक व्यवस्था का “रीसेट” बता रहे हैं.
अमेरिका की पकड़ ढीली, दुनिया दूर जा रही
द इकोनॉमिस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, 2000 में अमेरिका वैश्विक आयात का 20% हिस्सा था, जो अब घटकर 12% रह गया है. ब्राजील ने 6 बिलियन डॉलर का प्रोत्साहन पैकेज घोषित किया है, भारत “मेड इन इंडिया” को और बढ़ावा दे रहा है, जबकि कनाडा और जापान ने भी जवाबी टैरिफ लगाए हैं. दक्षिण कोरिया अपने उद्योगों को मध्य पूर्व और लैटिन अमेरिका में अवसर खोजने के लिए सब्सिडी दे रहा है.
भारत-चीन-रूस का संभावित त्रिकोण
31 अगस्त को बीजिंग में पीएम नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बैठक प्रस्तावित है, जिसमें रूस का समर्थन भी शामिल है. इसे रूस-भारत-चीन (RIC) गठजोड़ की वापसी माना जा रहा है, जो 1990 के दशक में प्रस्तावित हुआ था. ट्रंप की नीतियों और नाटो से पीछे हटने की धमकियों के बीच यह त्रिकोण अमेरिका के प्रभाव को चुनौती दे सकता है.
भारत का झुकाव- रणनीति, विचारधारा नहीं
भारत पश्चिम से दूर नहीं हो रहा, लेकिन ट्रंप के 50% टैरिफ के कारण उसे रणनीतिक विकल्प तलाशने पड़ रहे हैं. भारत चीन के साथ सीमा विवाद सुलझाने की कोशिश कर रहा है और सात साल बाद मोदी चीन जा रहे हैं.
क्यों अहम है RIC?
रूस इस त्रिकोण को मज़बूत करने के लिए इसलिए इच्छुक है क्योंकि वह यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी प्रतिबंधों से बुरी तरह जूझ रहा है. चीन इसमें इसलिए दिलचस्पी ले रहा है क्योंकि अमेरिका का प्रभाव घटने से उसे नए बाजार मिल सकते हैं. भारत के लिए यह समीकरण इसलिए अहम है क्योंकि अमेरिकी दबाव का सामना करते हुए उसे रणनीतिक लचीलापन चाहिए. अगर यह गठबंधन मज़बूत होता है तो अमेरिका की वैश्विक पकड़ और भी कमजोर हो सकती है.
सहयोगी देशों की चिंता
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार जर्मनी, जापान और भारत जैसे अमेरिकी सहयोगी देश अमेरिका-केंद्रित सुरक्षा व्यवस्था के विकल्प तलाशने लगे हैं. जर्मनी और जापान में अब यह चर्चा तेज हो चुकी है कि अगर अमेरिका पीछे हट गया तो उनकी सुरक्षा की गारंटी कौन देगा. ब्राजील के राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा लगातार BRICS देशों को अमेरिका से अलग होकर व्यापार बढ़ाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से डिजिटल पेमेंट सिस्टम जोड़ने की बात की है और शी जिनपिंग से नए व्यापार विस्तार पर भी चर्चा की है.
आंकड़े भी इस बदलाव की गवाही देते हैं. आज ब्राजील के केवल सातवें हिस्से का निर्यात ही अमेरिका को जाता है, जबकि 20 साल पहले यह चौथाई था. अब BRICS देशों के बीच आपसी व्यापार अमेरिका के साथ होने वाले व्यापार से भी ज़्यादा हो गया है और यह अंतर लगातार बढ़ रहा है.
RIC के पीछे कारण:
- रूस को यूक्रेन युद्ध और प्रतिबंधों से राहत चाहिए.
- चीन अमेरिकी प्रभाव घटने से आर्थिक मौके देख रहा है.
- भारत को अमेरिकी आर्थिक दबाव से निकलने का रास्ता चाहिए.
क्या हैं कमजोरियां?
- 2020 में गलवान घाटी संघर्ष.
- चीन की रेयर अर्थ नीति से भारत का ईवी सेक्टर प्रभावित.
- भारत अब भी अमेरिकी बाजार और तकनीक पर निर्भर.
अमेरिका की भूमिका और भारत की चुनौती
भारत के अमेरिका को निर्यात 77.5 बिलियन डॉलर (2024) रहा, जो रूस और चीन की तुलना में कहीं अधिक है. लेकिन अब ट्रंप ने भारत पर चीन से भी ज्यादा शुल्क लगाया है. इससे दिल्ली हैरान है, खासकर जब ट्रंप पहले मोदी के करीबी माने जाते थे.
मोदी का आश्वासन और आत्मनिर्भरता पर जोर
अहमदाबाद की रैली में पीएम मोदी ने छोटे व्यापारियों, किसानों और पशुपालकों को भरोसा दिलाया कि उनकी सरकार उनके हितों की रक्षा करेगी. उन्होंने कहा कि “दुनिया राजनीति कर रही है, लेकिन भारत में छोटे उद्यमियों और किसानों की ताकत से आत्मनिर्भर भारत अभियान मजबूत हो रहा है.”
आर्थिक मोर्चे पर तैयारी
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर संजय मालहोत्रा ने कहा कि ट्रंप के टैरिफ से भारत पर सीमित असर होगा. फिच रेटिंग्स के मुताबिक, यह भारत की सप्लाई चेन शिफ्ट से मिलने वाले लाभ को कम कर सकता है. भारत ने वॉशिंगटन में मरक्यूरी पब्लिक अफेयर्स एलएलसी नामक लॉबिंग फर्म को भी हायर किया है, जिसके ट्रंप से गहरे संबंध हैं.
आगे क्या?
31 अगस्त 2025 को बीजिंग में प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बैठक होगी. रूस चाहता है कि इसमें त्रिपक्षीय वार्ता भी हो. सितंबर से दिसंबर 2025 के बीच अमेरिका में मिडटर्म चुनाव होंगे. अगर इन चुनावों में रिपब्लिकन पार्टी का प्रदर्शन कमज़ोर रहा तो ट्रंप और अधिक दबाव में आ सकते हैं.
ट्रंप की एकतरफा नीतियों ने अमेरिकी ताकत बढ़ाने के बजाय घटा दी है. सहयोगी देश अब विकल्प तलाश रहे हैं और विरोधी देश नजदीक आ रहे हैं. भारत, चीन और रूस का समीप आना स्थायी हो या न हो, लेकिन यह बदलते वैश्विक समीकरणों की सच्चाई को दर्शाता है.
Source link
Brazil,CHINA,DONALD Trump,donald trump,US Tariffs,Xi Jinping, NATO,Atmanirbhar Bharat, RBI, Fitch Ratings, Mercury Public Affairs, Ahmedabad Rally, Global Alliances, Trade War,डोनाल्ड ट्रंप, अमेरिका टैरिफ, भारत, चीन, रूस, आरआईसी गठजोड़, वैश्विक व्यापार, ब्राज़ील, जापान, दक्षिण कोरिया, नरेंद्र मोदी, शी जिनपिंग, नाटो, आत्मनिर्भर भारत, आरबीआई, फिच रेटिंग्स, लॉबिंग, अहमदाबाद रैली, वैश्विक गठबंधन, व्यापार युद्ध