भारत रूस तेल खरीद पर रघुराम राजन का बयान: अमेरिकी टैरिफ और भारत की ऊर्जा नीति पर असर
Raghuram Rajan: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर और मशहूर अर्थशास्त्री डॉ. रघुराम राजन ने भारत की ऊर्जा नीति पर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि भारत को रूस से तेल खरीद की मौजूदा रणनीति पर गंभीरता से दोबारा विचार करना चाहिए। उनका कहना है कि यह मामला अब केवल व्यापार और कीमतों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि भू-राजनीतिक तनावों से सीधे जुड़ गया है। राजन का तर्क है कि हमें यह समझना चाहिए कि इस सौदे से किसको वास्तविक फायदा हो रहा है और किसे नुकसान उठाना पड़ रहा है। “हमें यह देखना होगा कि इससे किसको फायदा हो रहा है और किसको नुकसान। अगर फायदा ज्यादा नहीं है, तो शायद इस पर फिर से सोचना चाहिए।” यह बयान ऐसे समय में आया है जब वैश्विक व्यापार व्यवस्था लगातार राजनीतिक दबावों से प्रभावित हो रही है।

अमेरिका भारत टैरिफ विवाद और बढ़ता दबाव
हाल के महीनों में भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव काफी बढ़ा है। अमेरिका ने भारत पर पहले 25 प्रतिशत का टैरिफ लगाया था और फिर रूस से तेल आयात पर आपत्ति जताते हुए डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने 25 प्रतिशत और जोड़ दिया। इस तरह 27 अगस्त से भारत पर कुल 50 प्रतिशत का भारी टैरिफ लागू है। इसका सीधा असर भारतीय निर्यातकों पर पड़ा है, जिन्हें अपने उत्पादों को वैश्विक बाजार में बेचने में कठिनाई हो रही है। राजन का कहना है कि यह घटना भारत के लिए एक गंभीर चेतावनी है। उन्होंने कहा कि दुनिया की मौजूदा व्यवस्था में बड़े देश व्यापार, निवेश और वित्त को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं और भारत को अपने फैसले बहुत सोच-समझकर लेने होंगे। “यह एक चेतावनी है। हमें किसी एक देश पर बहुत ज्यादा निर्भर नहीं रहना चाहिए। व्यापार, निवेश और वित्त को हथियार बना दिया गया है।”

भारतीय अर्थव्यवस्था और तेल व्यापार में असमानता
राजन का तर्क है कि रूस से आने वाले तेल का असली फायदा कुछ चुनिंदा रिफाइनर कंपनियों तक सीमित है। ये कंपनियां घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कीमतों के बीच के अंतर से बड़ा मुनाफा कमा रही हैं। लेकिन दूसरी ओर भारत के निर्यातक अमेरिकी टैरिफ की वजह से लगातार नुकसान झेल रहे हैं। इस स्थिति में संतुलन बिगड़ गया है क्योंकि जहां एक वर्ग लाभ कमा रहा है वहीं व्यापक अर्थव्यवस्था पर इसका भार पड़ रहा है। राजन ने सवाल उठाया कि क्या यह सौदा पूरे देश के हित में सही है या सिर्फ कुछ कंपनियों के लिए लाभकारी। “रिफाइनर अत्यधिक मुनाफा कमा रहे हैं, लेकिन निर्यातक टैरिफ के जरिए इसकी कीमत चुका रहे हैं।” उनके अनुसार अगर इससे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को वास्तविक फायदा नहीं हो रहा है तो इस नीति पर पुनर्विचार जरूरी है।

जियोपॉलिटिक्स और भारत की ऊर्जा नीति
डॉ. राजन का मानना है कि यह मामला अब निष्पक्षता या व्यापार का नहीं बल्कि जियोपॉलिटिक्स का है। उन्होंने कहा कि आज हर बड़ा देश व्यापार, निवेश और ऊर्जा संसाधनों को अपनी विदेश नीति का हिस्सा बना चुका है। ऐसे समय में अगर भारत केवल रूस पर निर्भर रहेगा तो यह एक बड़ी कमजोरी बन सकती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत को अपने साझेदार देशों की सूची लंबी करनी होगी और ऊर्जा स्रोतों को विविध बनाना होगा। “हमें किसी पर बहुत ज्यादा निर्भर नहीं रहना चाहिए। हमें पूर्व की ओर, यूरोप की ओर, अफ्रीका की ओर देखना चाहिए और अमेरिका के साथ भी आगे बढ़ना चाहिए।” राजन ने यह भी कहा कि भारत को संतुलन साधने के लिए रणनीतिक सोच और लचीलापन अपनाना चाहिए ताकि किसी एक देश पर अत्यधिक निर्भरता से बचा जा सके।

चीन और यूरोप से तुलना में भारत की स्थिति
राजन ने यह भी बताया कि भारत अकेला देश नहीं है जो रूस से कच्चा तेल खरीद रहा है। चीन और यूरोप भी बड़े पैमाने पर तेल आयात कर रहे हैं, लेकिन अमेरिका ने उन पर भारत जैसा सख्त टैरिफ नहीं लगाया। इससे यह साफ होता है कि भारत पर अपेक्षाकृत ज्यादा दबाव बनाया जा रहा है। राजन का कहना है कि भारत को इस चुनौती को अवसर में बदलना चाहिए। अगर भारत अपनी ऊर्जा और व्यापारिक नीतियों में विविधता लाता है तो वह न केवल अमेरिकी दबाव से निकल पाएगा बल्कि नए वैश्विक बाजारों तक भी पहुंच सकता है। उन्होंने कहा, “व्यापार को हथियार बना दिया गया है। निवेश को हथियार बना दिया गया है। वित्त को हथियार बना दिया गया है।” यही कारण है कि भारत को अब दीर्घकालिक सोच अपनाकर अपने हित सुरक्षित करने होंगे।

भारत की विकास दर और भविष्य की राह
डॉ. राजन ने भारत की आर्थिक दिशा को लेकर भी अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि भारत को आत्मनिर्भरता बढ़ाने के साथ-साथ नए साझेदारों से सहयोग भी बढ़ाना चाहिए। उनके अनुसार भारत की सबसे बड़ी चुनौती रोजगार सृजन है और इसके लिए 8 से 8.5 प्रतिशत की विकास दर जरूरी है। यह दर तभी संभव होगी जब भारत अपने फैसलों में दूरदर्शिता और संतुलन दिखाएगा। “अगर हमें 8 से 8.5 प्रतिशत की विकास दर हासिल करनी है, तो हमें अपने फैसलों में दूरदर्शिता रखनी होगी।” उन्होंने यह भी कहा कि भारत को चीन, जापान, अमेरिका और अन्य देशों से सहयोग करना चाहिए, लेकिन किसी एक पर पूरी तरह निर्भर नहीं होना चाहिए।

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