राहुल गांधी के वोट चोरी आरोप पर चुनाव आयोग का पलटवार, दी सख्त चुनौती
Election Commission: लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने हाल ही में चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि कई निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाता सूची में फर्जी और डुप्लिकेट नाम जोड़े गए हैं। उनके अनुसार, यह कदम चुनाव नतीजों को प्रभावित करने और ‘‘एक व्यक्ति, एक वोट’’ जैसे लोकतांत्रिक सिद्धांत को कमजोर करने का प्रयास है। राहुल गांधी ने यह भी मांग की कि चुनाव आयोग डिजिटल मतदाता सूची सार्वजनिक करे, ताकि नागरिक और राजनीतिक दल स्वतंत्र रूप से उसका ऑडिट कर सकें। कांग्रेस का दावा है कि उसके विश्लेषण में, खासतौर पर कर्नाटक के महादेवपुरा क्षेत्र में गंभीर विसंगतियां सामने आई हैं, जो पारदर्शिता पर सवाल खड़े करती हैं।

चुनाव आयोग ने आरोपों को बताया तथ्यहीन
राहुल गांधी के आरोपों का चुनाव आयोग ने तुरंत खंडन किया। आयोग ने कहा कि मतदाता सूची की तैयारी और संशोधन की पूरी प्रक्रिया कानूनी प्रावधानों के तहत होती है। मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के अनुसार, किसी का नाम बिना ठोस प्रमाण और उचित प्रक्रिया के हटाया या जोड़ा नहीं जा सकता। आयोग के मुताबिक, मीडिया रिपोर्ट या इंटरनेट पर फैली अफवाहों के आधार पर बड़े पैमाने पर कार्रवाई संभव नहीं है। हां, जरूरत पड़ने पर पंजीकरण अधिकारी प्रारंभिक जांच जरूर कर सकते हैं।
आयोग ने दी सबूत पेश करने की चुनौती
आयोग ने राहुल गांधी और अन्य आरोप लगाने वालों को चुनौती दी कि वे केवल बयानबाजी न करें, बल्कि अपने दावों को शपथपत्र और ठोस सबूत के साथ प्रस्तुत करें। नियम 20(3)(बी) का हवाला देते हुए आयोग ने स्पष्ट किया कि आरोप लगाने वाले को कानूनी रूप से प्रमाण देना अनिवार्य है। आयोग ने यह भी चेतावनी दी कि बिना सबूत के इस तरह के आरोप लोकतंत्र की बुनियाद को कमजोर कर सकते हैं और हजारों पात्र मतदाताओं के अधिकारों पर असर डाल सकते हैं।

बिहार की मतदाता सूची पर भी आया विवाद
यह विवाद केवल कर्नाटक तक सीमित नहीं रहा, बिहार में भी मतदाता सूची पर सवाल उठे हैं। विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया के बाद आयोग को कुल 17,665 दावे और आपत्तियां प्राप्त हुईं, जिनमें से 454 का निपटारा किया जा चुका है। दिलचस्प बात यह है कि 13 दिनों में किसी भी राजनीतिक दल ने औपचारिक दावा या आपत्ति दर्ज नहीं कराई। आयोग का कहना है कि हर बदलाव से पहले दस्तावेजों का सत्यापन किया जाता है और सात दिन के भीतर अंतिम निर्णय लिया जाता है।

नए मतदाताओं का पंजीकरण और नियम
चुनाव आयोग ने जानकारी दी कि इस बार 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र के 74,525 नए मतदाता पंजीकरण के लिए आगे आए हैं, जिनमें बीएलएएस से प्राप्त छह फॉर्म भी शामिल हैं। आयोग ने दोहराया कि 1 अगस्त 2025 को प्रकाशित प्रारूप सूची से किसी का नाम हटाने से पहले पूरी जांच और निष्पक्ष अवसर देना जरूरी है। यह नियम इसलिए लागू है ताकि किसी पात्र मतदाता का नाम गलती से या राजनीतिक दबाव में सूची से न हटाया जा सके।

पारदर्शिता और लोकतंत्र की बहस
पूरा मामला अब पारदर्शिता बनाम राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप की बहस में बदल गया है। राहुल गांधी की मांग कि डिजिटल मतदाता सूची सार्वजनिक हो, कई नागरिक संगठनों को भी समर्थन दे रही है। वहीं, चुनाव आयोग का कहना है कि मौजूदा कानून और प्रक्रिया पर्याप्त पारदर्शिता सुनिश्चित करते हैं। लेकिन यह बहस इस ओर इशारा करती है कि चुनावी प्रक्रिया में भरोसा बनाए रखने के लिए पारदर्शिता और जवाबदेही पर लगातार काम करने की आवश्यकता है।
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