union home minister amit shah on 50 years of emergency says we must not forget those memories
Amit Shah on Emergency: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इमरजेंसी के 50 साल पूरे होने पर इसे लोकतंत्र की नींव हिलाने वाली घटना बताया. डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि 24 जून, 1975 स्वतंत्र भारत की सबसे लंबी रात थी क्योंकि इसकी सुबह 21 महीने बाद आई. वहीं, ये सबसे छोटी रात भी इसलिए थी क्योंकि जिस संविधान को बनाने में दो साल और 11 महीने से ज्यादा समय लगा था, उसे किचन कैबिनेट ने एक पल में निरस्त कर दिया था.
केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा, “अगर आपातकाल की याद धुंधली हुई तो यह देश के लिए खतरनाक है. देश में आपातकाल के खिलाफ लड़ाई ने लोकतंत्र को जीवित रखा. देश की जनता तानाशाही को कभी स्वीकार नहीं कर सकती है क्योंकि लोकतंत्र संविधान की भावना ही नहीं, बल्कि यह जन स्वभाव है.”
उन्होंने कहा, “मेरे अकेले गांव से जो एक छोटा-सा गांव है, वहां 84 लोगों को साबरमती जेल में डाल दिया गया था. एक रात पहले जो देश के नागरिक थे, वो अचानक तानाशाह के गुलाम हो गए. पत्रकार से असामाजिक तत्व बना दिए गए, छात्र से अस्थिरता फैलाने वाले तत्व करार देकर जेल भेज दिए गए.”
जो आज संविधान की दुहाई देते हैं, क्या उन्होंने इमरजेंसी के लिए बैठक बुलाई थी- शाह
अमित शाह ने कहा, “आपातकाल के समय मैं सिर्फ 11 साल का था. मेरे गैंग के 150 से ज्यादा लोगों को जेल में बंद कर दिया गया था. मैं वो दिन और दृश्य जिन्दगी भर नहीं भूल सकता हूं. बहुत सारे लोग आज संविधान की दुहाई देते हैं. क्या आपातकाल के लिए संसद की बैठक बुलाई गई थी? दुहाई देने वाले लोग उसी पार्टी से आते हैं जो लोकतंत्र के रक्षक से भक्षक बन गए थे.”
उन्होंने कहा, “हम सबको यह याद रखना चाहिए कि उस वक्त वह कितनी बड़ी लड़ाई थी, जिसमें कई लोगों के करियर समाप्त हो गए. कई लोग जेल में रहकर अपने परिवार का सब कुछ नष्ट होते देखते रहे, लेकिन इस लड़ाई ने भारत के लोकतंत्र को जीवित रखा.”
भारत की जनता तानाशाही को कभी बर्दाश्त नहीं कर सकती- शाह
शाह ने कहा, “आज हम दुनिया के सबसे बड़ा लोकतंत्र बनकर सम्मान के साथ खड़े हैं. इस लड़ाई को जीतने का मूल कारण है कि हमारे देश की जनता तानाशाही को कभी स्वीकार नहीं कर सकती. भारत लोकतंत्र की जननी माना जाता है.”
उन्होंने कहा, “आज आपातकाल की पूर्व संध्या की 50वीं बरसी है. आज का दिन इस संगोष्ठी के लिए उचित दिन है. क्योंकि अच्छे या बुरे किसी भी प्रकार की राष्ट्रीय घटना के जब 50 साल पूरे होते हैं तो समाज जीवन के अंदर इसकी याददाश्त धुंधली हो जाती है और आपातकाल जैसी लोकतंत्र की नींव हिलाने वाली घटना, इसके बारे में याददाश्त यदि समाज जीवन में धुंधली होती है तो किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए बहुत बड़ा खतरा होता है.
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